" संघर्ष गांव के एक लड़के की " इस कहानी में बताया गया है कि गांव के एक लड़के ने किन-किन स्थितियों का सामना करते हुए अपने जीवन को पार किया है। इस कहानी में जिन-जिन घटनाओं को दर्शाया गया है वह घटना आपके दिल और दिमाग को छु जाएगी। यह कहानी शुरू होती है २५ जनवरी १९९० ई. से, जब इस लड़के का जन्म होता है। इनके माता-पिता इसे बहुत ही लाड-प्यार से पालते हैं धीरे धीरे लड़का बड़ा होने लगता है और पढ़ने के लिए विद्यालय जाने लगता है। जिस विद्यालय में वह पढ़ने के लिए जाता था उस विद्यालय का नाम " स्वामी विवेकानंद सरस्वती शिशु विद्या मंदिर " था।यह विद्यालय लड़के के गांव से १.५ किमी.दुर दुसरे गांव में था और छोटी सी उम्र में इतनी दुर रोज पैदल जाता था। इसकी मां इसे रोज नहलाकर , कपड़े पहनाकर, नास्ते में दो रोटी खिलाकर और लंच के लिए दो रोटी लंचबॉक्स में भरकर दे देती थी और फिर गांव के लड़कों के साथ पढ़ने के लिए भेज देती थी। १९९० ई. के दशक में इस विद्यालय का फीस २० से ३० रुपए था। इस विद्यालय में वह बहुत ही अच्छे से कक्षा-५ तक पढ़ाई की और किसी कारण से यह विद्यालय बंद हो गया। इस विद्यालय में लड़के का रेंक टॉप ५ के बीच रहता था। इसका रोज का दिनचर्या था- रोज सबेरे उठकर भगवान को, माता-पिता और चाचा को प्रणाम करना और फिर फ्रेस होकर पढ़ाई करना, पढ़ाई करने के बाद उसकी मां उसे विद्यालय के लिए तैयार करती, उसके बाद विद्यालय जाता था और विद्यालय से आकर भोजन खाकर कुछ देर टी.वी. देखना, उसके बाद शाम में खेलना, फिर रात में थोड़ी पढ़ाई करना और उसके बाद भोजन खाकर सो जाना। इस रोज के दिनचर्या को पुरा करने में उसकी मां और चाचा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। इनके चाचा काम था सबेरे उठाकर पढ़ाना और रात में भी पढ़ाना और सोते समय कहानी सुनाना। वह विद्यालय बंद होने के बाद दुसरे विद्यालय में प्रवेश किया और वहां वर्ग-६ से हिंदी माध्यम से पढ़ाई शुरू किया। इसका लक्ष्य था वैज्ञानिक बनना क्योंकि वह किसी भी वस्तु या घटनाओं के बारे में ध्यान से सुनता,देखता और सोचता था पर उसे वैज्ञानिक कैसे बनना है यह पता नहीं था। उसे कुछ नया सिखना बहुत ही पसंद था। वह लड़का इस विद्यालय में वर्ग-१० तक बहुत अच्छे से पढ़ाई की और हर वर्ष इस विद्यालय से खेल-कूद में २ से ३ पुरस्कार लाता था। जैसे- १०० मीटर दौड़, २०० मीटर दौड़ , उच्ची कूद, लम्बी कूद ।
सोमवार, 12 फ़रवरी 2018
संघर्ष गांव के एक लड़के की
" संघर्ष गांव के एक लड़के की " इस कहानी में बताया गया है कि गांव के एक लड़के ने किन-किन स्थितियों का सामना करते हुए अपने जीवन को पार किया है। इस कहानी में जिन-जिन घटनाओं को दर्शाया गया है वह घटना आपके दिल और दिमाग को छु जाएगी। यह कहानी शुरू होती है २५ जनवरी १९९० ई. से, जब इस लड़के का जन्म होता है। इनके माता-पिता इसे बहुत ही लाड-प्यार से पालते हैं धीरे धीरे लड़का बड़ा होने लगता है और पढ़ने के लिए विद्यालय जाने लगता है। जिस विद्यालय में वह पढ़ने के लिए जाता था उस विद्यालय का नाम " स्वामी विवेकानंद सरस्वती शिशु विद्या मंदिर " था।यह विद्यालय लड़के के गांव से १.५ किमी.दुर दुसरे गांव में था और छोटी सी उम्र में इतनी दुर रोज पैदल जाता था। इसकी मां इसे रोज नहलाकर , कपड़े पहनाकर, नास्ते में दो रोटी खिलाकर और लंच के लिए दो रोटी लंचबॉक्स में भरकर दे देती थी और फिर गांव के लड़कों के साथ पढ़ने के लिए भेज देती थी। १९९० ई. के दशक में इस विद्यालय का फीस २० से ३० रुपए था। इस विद्यालय में वह बहुत ही अच्छे से कक्षा-५ तक पढ़ाई की और किसी कारण से यह विद्यालय बंद हो गया। इस विद्यालय में लड़के का रेंक टॉप ५ के बीच रहता था। इसका रोज का दिनचर्या था- रोज सबेरे उठकर भगवान को, माता-पिता और चाचा को प्रणाम करना और फिर फ्रेस होकर पढ़ाई करना, पढ़ाई करने के बाद उसकी मां उसे विद्यालय के लिए तैयार करती, उसके बाद विद्यालय जाता था और विद्यालय से आकर भोजन खाकर कुछ देर टी.वी. देखना, उसके बाद शाम में खेलना, फिर रात में थोड़ी पढ़ाई करना और उसके बाद भोजन खाकर सो जाना। इस रोज के दिनचर्या को पुरा करने में उसकी मां और चाचा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। इनके चाचा काम था सबेरे उठाकर पढ़ाना और रात में भी पढ़ाना और सोते समय कहानी सुनाना। वह विद्यालय बंद होने के बाद दुसरे विद्यालय में प्रवेश किया और वहां वर्ग-६ से हिंदी माध्यम से पढ़ाई शुरू किया। इसका लक्ष्य था वैज्ञानिक बनना क्योंकि वह किसी भी वस्तु या घटनाओं के बारे में ध्यान से सुनता,देखता और सोचता था पर उसे वैज्ञानिक कैसे बनना है यह पता नहीं था। उसे कुछ नया सिखना बहुत ही पसंद था। वह लड़का इस विद्यालय में वर्ग-१० तक बहुत अच्छे से पढ़ाई की और हर वर्ष इस विद्यालय से खेल-कूद में २ से ३ पुरस्कार लाता था। जैसे- १०० मीटर दौड़, २०० मीटर दौड़ , उच्ची कूद, लम्बी कूद ।
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